गुड़गांव, जो एक समय एक साधारण जंगली इलाका था, अब एक प्रमुख डेवलपमेंट हब बन चुका है। इस शहर का स्वरूप बदल गया है और आज यहाँ 100 करोड़ रुपये के अपार्टमेंट भी बिक रहे हैं। इस बदलाव के पीछे की कहानी काफी रोचक है। आइए जानते हे.
केपी सिंह: गुड़गांव के ‘डेवलपमेंट राजा’ की कहानी, जिसने बदला इसे एक स्मार्ट सिटी में!
केपी सिंह, जिन्होंने गुड़गांव को एक एडवांस सिटी बनाने का सपना देखा था उसने अपनी मेहनत और निरंतर प्रयासों से इसे हकीकत में बदल दिया। उन्होंने गुड़गांव को एक विकसित शहर के रूप में उभारा जो आज भारत के स्टार्टअप संगठनों का घर बन चुका है।
केपी सिंह का जन्म 19 नवंबर 1929 को हुआ था। उनके माता-पिता एक मध्यमवर्गीय परिवार से थे, लेकिन उन्होंने अपने सपनों को पूरा करने के लिए कई प्रतिबद्धताओं का सामना किया।
उनके एक बहुत ही करीबी दोस्त की सलाह पर वे इंग्लैंड में एयर सर्विस ट्रेनिंग कोर्स के लिए आवेदन कर दिया। अपने पैरेंट्स के सहयोग से उन्होंने अपने इस सपने को साकार किया।
गुड़गांव की डीएलएफ(DLF) ने उनके प्रयासों को समर्थन दिया और इसे एक स्मार्ट सिटी के रूप में उभारा। आज गुड़गांव भारतीय स्टार्टअप समुदाय के लिए एक प्रमुख केंद्र बन चुका है।
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केपी सिंह ने जूली से रसाई शादी फिर बदली किस्मत
केपी सिंह और जूली की शादी के बाद वे इंग्लैंड में ही बसने की योजना बना रहे थे, लेकिन उनकी जिंदगी में अचानक एक मोड़ आया। एक दिन उनकी मुलाकात इंडियन आर्मी ऑफिसर ब्रिगेडियर महेंद्र सिंह वडालिया से हुई। उन्हें इंडियन आर्मी में शामिल होने की सलाह दी गई, लेकिन केपी सिंह की इंग्लैंड में ही बसने की योजना थी। लेकिन एक विशेष केस के तहत उनकी परीक्षा को इंग्लैंड में ही आयोजित किया गया। उन्होंने इस परीक्षा में सफलता प्राप्त की, लेकिन उन्हें टिकट के पैसे की कमी का समाधान नहीं मिला। अतः उन्हें इंडिया वापस आना पड़ा।
इंडिया में लौटने के बाद केपी सिंह ने अपने पिताजी के व्यापार में शामिल हो गए। उनका बिजनेस ठीक चल रहा था, लेकिन 1957 में दिल्ली गवर्नमेंट ने एक ऐसा एक्ट पारित किया जिसके अनुसार कोई भी प्राइवेट डेवलपर दिल्ली में लैंड को एक्वायर नहीं कर सकता था। इसके बाद, केपी सिंह ने गुड़गांव के आस-पास के इलाकों को एक्वायर करना शुरू किया जिससे इस इलाके में डेवलपमेंट का काम शुरू हुआ।
राजीव गांधी की गाड़ी ने कैसे बदल दी केपी सिंह की जिंदगी
केपी सिंह के लिए गुड़गांव एक परिपूर्ण स्थान था और वहां एक शहर बनाने का काम शुरू किया। एक दिन जब वह गुड़गांव के किसानों से बात कर रहे थे तो उनके पास राजीव गांधी जी की गाड़ी रुकी। उन्हें पानी चाहिए था और ये कार राजीव गांधी जी की थी। उन्होंने केपी सिंह से उनके प्रोजेक्ट के बारे में पूछा जो उन्हें बहुत इम्प्रेस किया। इसके बाद उन्हें फर्स्ट लाइसेंस मिल गया था और उन्होंने किसानों को कन्विंस किया ताकि वह अपनी जमीन बेचें। उन्होंने जमीन खरीदने का अच्छा ऑफर दिया और उनके बच्चों के लिए स्कूल और हॉस्पिटल की सुविधा भी दी। अंत में किसानों ने मान लिया।
उन्होंने बाहर भी जाकर बहुत कुछ सीखा। साउथ कोरिया और मलेशिया के टूर पर जाकर उन्होंने उनके डेवलपमेंट मेथड्स को सीखा। फिर वह सिल्वर ओक्स नाम के प्रोजेक्ट पर काम करने लगे और उसके बाद डीएलएफ सिटी का डेवलपमेंट भी शुरू किया। उन्होंने किसानों को भी पैसे लौटाने में मदद की।
बंसीलाल के षड्यंत्र का शिकार कैसे बने केपी सिंह
DLF कंपनी की ग्रोथ तेजी से बढ़ रही थी लेकिन इस ग्रोथ को बंसीलाल को पसंद नहीं आई। उन दोनों के बीच अच्छी दोस्ती थी लेकिन एक पार्टी में एक सीनियर ऑफिसर ने बंसीलाल को इंसल्ट किया था। इसके बाद उनकी दोस्ती में दरारें आ गईं। बंसीलाल ने वापस से डीएलएफ के लाइसेंस कैंसिल कर दिए जिससे लोग परेशान हो गए और रिफंड की मांग करने लगे। केपी सिंह ने इस मुश्किल समय में भी सही कदम उठाया और सभी रिफंड कर दिए। बंसीलाल ने कई तरीकों से डीएलएफ को बर्बाद करने की कोशिश की लेकिन केपी सिंह ने सही दिशा में कदम बढ़ाया।
राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उनके घर पर रोज जनता दरबार लगाए जाते थे। एक दिन केपी सिंह उनके घर के बाहर कतार में नजर आए और उनसे मिलने की कोशिश की। उन्होंने राजीव गांधी को बंसीलाल द्वारा उत्पन्न की गई समस्याओं के बारे में बताया जिससे राजीव गांधी की नफरत बढ़ गई। फिर एक दिन केपी सिंह को राजीव गांधी के ऑफिस से फोन आया कि वह तुरंत मिलने आएं परन्तु जब वह ऑफिस पहुंचे तो पता चला कि उन्हें जेल भेजने की कोशिश की जा रही है। उनके चाचा ने उन्हें सुरक्षित जगह पर छुपा दिया। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वे इस समस्या से कैसे निकलें। बंसीलाल के कारण कंपनी की रेपुटेशन पर बहुत बुरा असर पड़ा जिससे लोगों का भरोसा खत्म हो गया। केपी सिंह ने नॉन बैंकिंग एजेंसियों से उच्च ब्याज दर पर ऋण लिया था लेकिन उनके लिए यह कठिन था। धीरे-धीरे कंपनी की स्थिति सुधारने लगी लेकिन अभी भी चुनौतियाँ बाकी थीं।
केपी सिंह ने विकास की गति को तेज किया लेकिन बंसीलाल ने फिर से अपनी चाल चली और सभी नियमों और विनियमों के खिलाफ जाकर 1998 में उस परियोजना को बंद कर दिया। उनके कार्यकाल में उन्होंने कई समस्याओं का सामना किया। जिससे कंपनी को बहुत नुकसान हुआ। अंततः 1999 के विधानसभा चुनाव में उनकी हार हो गई और ओम प्रकाश चौटाला ने हरियाणा के नए मुख्यमंत्री के रूप में काम किया। चौटाला के बिना ये सभी संभव नहीं था। उनकी मदद से आईटी सेक्टर को बढ़ावा मिला और उनके बेटे राजीव सिंह का भी महत्वपूर्ण योगदान था। उन्होंने डीएलएफ साइबर पार्क्स का विकास किया जिससे गुड़गांव में आज का मॉडर्न शहर बना। केपी सिंह की इस योजना की वजह से गुड़गांव के बीच की दूरी काफी कम हो गई और कई कंपनियों ने वहाँ फैक्ट्री स्थापित की। उन्हें इसके लिए 31 मार्च 2010 को पद्मभूषण से सम्मानित किया गया।